शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

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अपनी बेटी की भूख मिटाने के लिए सड़कों पर पेन बेचने को मजबूर हुआ ये पिता लेकिन एक तस्वीर ने बदल दी ज़िंदगी!

Patrika 13 Apr 2017 16:11
सीरिया की खबरें कई अख़बारों की हैडलाइन बन रही हैं। ख़बरों में मौतों के जो आंकड़े बताए जा रहे हैं उन पर विश्वास करना ऐसा लग रहा है जैसे ईकाई-दहाई के जोड़ को ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हों। साल 2015 और 2016 में जो आंकड़े सामने आये उनके अनुसार सीरिया के क़रीब 5 लाख ज्यादा बच्चे जंग-ए-मैदान जैसे हालातों में अपना बचपन गुज़ारने को मजबूर हैं। एक तरफ आतंकी संगठन IS और दूसरी तरफ गृहयुद्ध, अब ये जाएं तो कहाँ जाएं?

टीवी स्क्रीन्स पर गोला, बारूद, आग, धूल के गुबार हक़ीकत के कम और हॉलीवुड फ़िल्मों के दृश्यों के ज़्यादा क़रीब लग रहे हैं। वैसे अब तो ख़ून से सने बच्चों की इतनी तस्वीरें सामने आ चुकी हैं कि दुनिया ने भी संवेदनाएं दिखाना छोड़ दिया है। फिर भी हमारा यह फ़र्ज़ बनता है कि हम इन तस्वीरों को आपके सामने रखें।
Someone
हम आपको आज जिस तस्वीर से रूबरू करा रहे हैं वो तस्वीर एक पिता की है। जो सीरिया के हालातों से तंग आकर अपनी बेटी को लेकर एक शरणार्थी के तौर पर लेबनान पहुंचा और वहां की सड़कों पर अपनी बच्ची पेट पालने के लिए पैन बेचने लगा लेकिन उससे जो कमा पाता था वो उसकी बेटी का पेट भरने के भी नाकाफी थे।
Syrian
इस पिता और बच्ची की तस्वीर देख भले ही दुनिया की आंखे डबडबा गईं हों, पर सियासत जिनका मज़हब हो उनके लिए मासूमों के दर्द क्या और दास्तां क्या? दुनिया से कट चुके सीरिया के इस हिस्से से बयह तस्वीर पल-पल का दर्द बयां कर रही है जिसपर दुनिया भर की नज़र जा रही है, लेकिन जिसकी जानी चाहिए वही बेख़बर है।
Abdul
इस तस्वीर में जो शख्स दिखाई दे रहा है उसका नाम है अब्दुल, जो अपनी बीमार बेटी के इलाज़ और खाने के लिए रोज सुबह सड़कों पर निकल पड़ता है. बच्ची की मां की मौत एक हमले में पहले ही हो चुकी है और यह बच्ची भी कुछ खाने में समर्थ नहीं है. वजह वही है, सीरिया के युद्ध जैसे हालात!
Helped
एक दिन यूँही जब अब्दुल अपनी बेटी को गोद में उठाए पैन बेच रहा था तब किसी अनजान ने उसकी तस्वीर खींच सोशल मीडिआ पर अपलोड कर दी. जैसे ही यह तस्वीर सोशल मीडिया के जरिये लोगों तक पहुंची, लोगों की संवेदनाएं जाग गईं और लोग इस शख्स और उसकी बेटी की मदद के लिए हाथ बढ़ाने लगे।
Making
लोगों की मदद के कारण ही अब्दुल को लगभग 2 लाख डॉलर की मदद मिली। अब्दुल ने इस मदद से मिले पैसों को व्यर्थ नहीं जाने दिया। उन्होंने इन रुपयों से लेबनान में ही एक छोटा सा रेस्टोरेंट खोला और बाकी बचे पैसों से सीरिया से आये अन्य शरणार्थियों की मदद की।











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